Lekh Ka Sach (in Hindi) – Part 1, 2, 3, 4, 5, 6 and 7
By Sanjeev Dixit
हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक सुरीले एवं विविध सुर-आयाम के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक “मोहम्मद रफ़ी” की वाणी-वीणा से सुसज्जित दुर्लभ गीतों की साहित्यिक विवेचना तथा उनके गायन-साम्राज्य के पुनरावलोकन से सजी पुस्तक “वो जब याद आए बहुत याद आए” के एक लेख का सच-
इस पुस्तक के एक लेख में लिखा गया है कि, “रफ़ी साहब” ने महेंद्र कपूर जी को अपने साथ युगल गीत गाने से मना कर रखा था।
इस विषय को ले कर जब मैंने “श्री महेंद्र कपूर जी” के सुपुत्र “श्री रोहन कपूर जी” से बात की तो उन्होंने इस बात को ना-पसंद करते हुए सिरे से खारिज़ कर दिया और कहा – “गलत, कभी नहीं,, रफ़ी साहब ऐसा कभी कह ही नहीं सकते। ” उन्होंने आगे कहा कि- “चूँकि, रफ़ी साहब और मेरे पापा की आवाज़ें मिलती जुलती थी और श्रोताओं के लिए उनमें अंतर कर पाना मुश्किल होता इस लिए दोनों ने साथ में ज्यादा युगल गीत नहीं गाये और रफ़ी साहब का ये भी मानना था कि, इस बात का फायदा उठा कर कुछ लोग उनके प्यार में खटास पैदा करने की कोशिश करेंगे। दोनों में अंत समय तक बाप-बेटे या भाई-भाई जैसा प्यार था”
दोस्तों अगर ऐसा न होता तो महेंद्र कपूर जी लंदन के एक शो में रफ़ी साहब के बेटों के पाँव न छूते। यह बात शायद बहुत काम लोगों को मालूम है. महेंद्र कपूर जी का मानना था कि, रफ़ी साहब” के पुत्र उनके गुरु-भाई हैं और वो भी उनके लिए उतने ही सम्मानित हैं जितने की “रफ़ी साहब”
शायद लेख लिखने वालों ने महेंद्र कपूर जी द्वारा ज़ी न्यूज़ को दिए गए इंटरव्यू को नहीं देखा जिसमे वो अनवरत १५ मिनट तक “रफ़ी साहब” के बारे में भाव-विह्वल हो कर बोलते रहे थे और अंत में उनकी आँखों में आँसू आ गए थे. कहने को तो और भी बहुत कुछ है पर संक्षेप में इतना ही.
(मैं “रोहन कपूर जी की सहमति से इस तथ्य को सार्वजनिक कर रहा हूँ)
दोस्तों, भविष्य में इसी पुस्तक के कुछ अन्य लेखों की भी विवेचना करेंगे और उनका सच जानेंगे।
“जय रफ़ी साहब”
“लेख का सच: भाग-2”
हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक सुरीले एवं विविध सुर-आयाम के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक “मोहम्मद रफ़ी” की वाणी-वीणा से सुसज्जित दुर्लभ गीतों की साहित्यिक विवेचना तथा उनके गायन-साम्राज्य के पुनरावलोकन से सजी पुस्तक “वो जब याद आए बहुत याद आए” के एक अन्य लेख-(2) का सच-
इस पुस्तक के एक लेख में लिखा गया है कि, 1948 की फिल्म मेला के गीतों की रिकॉर्डिंग के समय नौशाद साहब ने “मुकेश जी” से शंकर-जयकिशन जी का साथ छोड़ कर अपने साथ आने का प्रस्ताव रखा और जब “मुकेश जी” ने मना कर दिया तो नौशाद साहब ने मेला फिल्म का अमर गीत “ये ज़िन्दगी के मेले दुनिया में कम न होंगे अफ़सोस हम न होंगे…” मोहम्मद रफ़ी साहब से गवाया (यहाँ आप को बताते चलें कि, मेला फिल्म के बाकी सभी गीत मुकेश जी ने ही गाये हैं)
मोहम्मद रफ़ी साहब पर यह भी आरोप है कि, वो दूसरे गायकों से गाने छीन लिया करते थे. है न हास्यास्पद और बचकानी बात?
अब हम आप को बताते हैं कि, वास्तव में सच क्या है. हालांकि, मुझे पहले से ही पता है फिर भी confirm करने के लिए मैंने “नौशाद साहब” के साहबज़ादे “श्री राजू नौशाद जी” से बात की. उन्होंने दिल खोलकर लगभग ३५ मिनट तक बात की और लखनऊ आने पर मिलने की इच्छा भी जताई।
नौशाद साहब के साहबज़ादे श्री राजू नौशाद जी पहले तो ऐसी बचकानी बातें सुन कर थोड़ा नाराज़ हुए किन्तु फिर विस्तार से पूरी बात बतायी। उन्होंने मेला फिल्म के गीत “ये ज़िन्दगी के मेले दुनिया में कम न होंगे..” के मोहम्मद रफ़ी साहब द्वारा गाये जाने के दो कारण बताये।
१) यह गीत फिल्म में एक फ़क़ीर पर फिल्माया गया है और यह सर्व-विदित है कि, फ़क़ीर पर फिल्माए जाने वाले गीतों के लिए पहली पसंद “रफ़ी साहब” ही होते थे और उन्होंने सर्वाधिक फ़क़ीरों पर फिल्माए जाने वाले गीत गाये हैं और फिल्म संगीत का इतिहास इस बात का गवाह है, कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है.
२) यह सर्व-विदित है कि, मुकेश जी फिल्म इंडस्ट्री में “अभिनेता” बनने के लिए आये थे न कि, गायक बनने के लिए. मेला फिल्म के सभी गीत मुकेश जी ही गाने वाले थे परन्तु जब उन्हें यह पता चला कि, यह गीत फिल्म के अभिनेता पर फिल्माए जाने के बजाय एक फ़क़ीर पर फिल्माया जाना है तो अपनी अभिनेता छवि को लेकर वो थोड़ा चिंतित हो उठे. उन्होंने नौशाद साहब से सीधे तो कुछ नहीं कहा लेकिन नौशाद साहब उनके मन की बात समझ गए और यह गीत मोहम्मद रफ़ी साहब” से गवाया।
तो दोस्तों, ये था मोहम्मद रफ़ी साहब के इस अमर गीत का सच. अगर नौशाद साहब के मन में मुकेश जी के लिए कोई भी दुर्भावना होती तो वे आने वाले वर्षों में मुकेश जी से गीत न गवाते जबकि, आने वाले वर्षों में भी नौशाद साहब मुकेश जी से गीत गवाते रहे जैसे – अंदाज़(१९४९), क़ातिल(१९६०), साथी(१९६८), तांगेवाला(१९७२) और सुनहरा संसार(१९७५) आदि.
श्री राजू नौशाद जी ने ऐसे किसी भी आरोप को पूर्णतयः ग़लत और लेखक द्वारा स्वयं का झूठा प्रचार करने वाला बताया।
दोस्तों, भविष्य में इसी पुस्तक के कुछ अन्य लेखों की भी विवेचना करेंगे और उनका सच जानेंगे।
लीजिये सुनिए मोहम्मद रफ़ी साहब का ये अमर कालजयी दार्शनिक गीत-
Part-(i)
https://www.youtube.com/watch?v=tvOxEbWS8d8
Part-(ii)
https://www.youtube.com/watch?v=2hfXq3F11bQ
“जय रफ़ी साहब”
“लेख का सच: भाग-3”
हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक सुरीले एवं विविध सुर-आयाम के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक “मोहम्मद रफ़ी” की वाणी-वीणा से सुसज्जित दुर्लभ गीतों की साहित्यिक विवेचना तथा उनके गायन-साम्राज्य के पुनरावलोकन से सजी पुस्तक “वो जब याद आए बहुत याद आए (संपादक: श्री सुमन चौरसिया जी)” के एक अन्य लेख-(3) का सच-
इस पुस्तक के एक लेख में कहा गया है कि, “आज हमें रफ़ी साहब के गीत ज्यादा सुनाई नहीं देते और उनके रिकॉर्ड को अलमारी में शुशोभित कर के रख दिया गया है”
मैं लेखक की इस बात से पूर्णतयः असहमत हूँ, “रफ़ी साहब” और उनके गीत आज दिन प्रति दिन और भी अधिक लोकप्रिय होते जा रहें हैं. लेखक को शायद इस बात की जानकारी नहीं है कि, मोहम्मद रफ़ी साहब” को २००१ में “सहस्त्राब्दि गायक (Singer of the Millennium)” के रूप में सम्मानित किया जा चुका है और यही नहीं हिंदी सिनेमा के १०० वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रसिद्ध चैनल बीबीसी द्वारा कराये गए एक सर्वेक्षण में “रफ़ी साहब” द्वारा गया हुआ गीत “बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है…” देश का सर्वाधिक सुना जाने वाला गीत घोषित किया गया. दोस्तों ये वही गीत है जिसके बिना किसी भी विवाह की “जयमाला” पूर्ण नहीं होती,और मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ की, लेखक के विवाह में जयमाला के अवसर पर भी यही गीत अवश्य ही बजा होगा।
दोस्तों, रफ़ी साहब की लोकप्रियता यहीं पर ख़त्म नहीं होती, विगत दो वर्षों में CNN-IBN द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कराये गए एक अन्य सर्वेक्षण में “रफ़ी साहब” को “Greatest voice of Indian Cinema” के टाइटल से नवाज़ा गया जिसे youtube video channel पर दिए गए link पर देखा जा सकता है.
https://www.youtube.com/watch?v=b3LUtR6VuTE
यही नहीं हमारे जीवन में कोई भी अवसर ऐसा नहीं है जिसके लिए “रफ़ी साहब” ने सब से ज्यादा लोकप्रिय गीत न गाया हो, जैसे-
1) बच्चे के जन्म के अवसर पर किन्नरों द्वारा गाया जाने वाला लोकप्रिय गीत- “सज़ रही गली मेरी माँ सुनहरे गोटे में..”
2) बच्चे के जन्म-दिन पर सर्वाधिक लोकप्रिय गीत- “बार-बार दिन ये आये..”
3) सर्वाधिक लोकप्रिय बाल गीत- “चूं चूं करती आई चिड़िया..”
4) सगाई में अवसर पर- “शादी के लिए रज़ामंद कर ली मैंने एक लड़की पसंद कर ली”
5) बारात के अवसर पर- “ये देश है वीर जवानों का.. एवं मेरा यार बना है दूल्हा..
6) जयमाला के अवसर पर- “बहारों फूल बरसाओ”
7) विदाई के अवसर पर- “बाबुल की दुवाएँ लेती जा और चलो रे डोली उठाओ कहार”
8) देशभक्ति गीतों में सर्वाधिक लोकप्रिय- “कर चले हम फ़िदा.., ऐ वतन ऐ वतन.., अपनी आज़ादी को हम.., जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया.. आदि आदि (सर्वाधिक देशभक्ति गीत रफ़ी साहब ने ही गाये हैं)
9) भजन- सुख के सब साथी.., बड़ी देर भई नंदलाला.., गंगा तेरा पानी अमृत.. (सर्वाधिक भजन रफ़ी साहब ने ही गाये हैं)
10) दार्शनिक गीत- “ईश्वर अल्ला तेरे नाम.., एक बंजारा गाये जीवन के गीत सुनाये.. आदि
हर अवसर पर सर्वाधिक लोकप्रिय गीत रफ़ी साहब ने ही गाया है और हमारे हर त्यौहार एवं अवसर के लिए गाया है.
आंकड़े गवाह हैं कि, प्रत्येक रेडियो (Except biased channel Big FM) एवं टीवी चैनल पर सर्वाधिक प्रसारित किये जाने वाले गीत रफ़ी साहब के ही होते हैं. यह तो केवल एक छोटी सी बानगी मात्र है रफ़ी साहब की लोकप्रियता की, अभी न जाने कितने और कारण और गीत गिनाये जा सकते हैं.
इसके अतिरिक्त एक वेबसाइट पर भी रफ़ी साहब की लोकप्रियता देखी जा सकती है.
इतना सब कुछ होने के बाद भी लोग न जाने कैसे कहते हैं कि, आज “रफ़ी साहब” और उनके गीत लोकप्रिय नहीं हैं, बल्कि मैं तो ये कहूँगा कि, आज अपने देहावसान के ३५ वर्ष बाद भी “रफ़ी साहब” की लोकप्रियता उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही है और हमेशा बढ़ती ही रहेगी।
दोस्तों, भविष्य में इसी पुस्तक के कुछ अन्य लेखों की भी विवेचना करेंगे और उनका सच जानेंगे।
“जय रफ़ी साहब”
“लेख का सच: भाग-4”
हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक सुरीले एवं विविध सुर-आयाम के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक “मोहम्मद रफ़ी” की वाणी-वीणा से सुसज्जित दुर्लभ गीतों की साहित्यिक विवेचना तथा उनके गायन-साम्राज्य के पुनरावलोकन से सजी पुस्तक “वो जब याद आए बहुत याद आए (संपादक: श्री सुमन चौरसिया जी)” के एक अन्य लेख-(4) का सच-
इस पुस्तक के एक लेख में उल्लेख किया गया है कि, प्रसिद्ध सहगान “दिल ने फिर याद किया बर्क़ सी लहराई है…” में “रफ़ी साहब” ने बर्क़(Lightning) शब्द का सही उच्चारण नहीं किया है.
इस बारे में मैंने इस गीत की संगीतकार जोड़ी “सोनिक-ओमी” जी के श्री ओमी जी से बात की और उनसे पूछा कि, क्या आप लेखक की इस बात से सहमत हैं? (मेरे पास उनसे हुई बात की रिकॉर्डिंग मौजूद है, यदि किसी को शंका हो तो सुन सकता है)
मेरे प्रश्न पर वो बोले कि, “लोग अपनी खुद की पब्लिसिटी के लिए कुछ भी ऊटपटाँग लिख देते हैं।
यह एक पर्शियन शब्द है और इसे सुनते समय कभी कभी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है लेकिन अगर ध्यान से सुना जाए तो स्पष्ट समझ में आ जाता है कि, क्या शब्द बोला गया है.”
“रफ़ी साहब” ने गाते समय कोई गलत उच्चारण नहीं किया है, बल्कि केवल सुनने का भ्रम मात्र ही है क्योंकि, पर्शियन भाषा में इस शब्द के अंत का उच्चारण अक्षर “क” और “प” का समिश्रण है किन्तु उर्दू भाषा में आते आते इसका अपभ्रंश “बर्क़” हो गया. यही वजह है कि, यह शब्द सुनने पर कभी कभी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
“रफ़ी साहब” एक ऐसे गायक रहे हैं जो, जिस देश में जाते थे वहां की भाषा में एक गीत अवश्य ही गाते थे, उदहारण के लिए जब रफ़ी साहब “सूरीनाम” की राजधानी “पेरामरिबो” गए थे तो वहां पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध गीत “बहारों फूल बरसाओ…” “सूरीनाम भाषा” में भी गाया था, जिसे youtube पर निम्न लिंक द्वारा सुना जा सकता है-
https://www.youtube.com/watch?v=B1PpWo-510I
“रफ़ी साहब” का उच्चारण अगर सुनना है तो गीत “जहाँ डाल-२ पर सोने की चिड़िया..” से पूर्व में गाया गया श्लोक “गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु…” सुनिए,
प्रसिद्ध भजन “जय रघुनन्दन जय सिया राम..” के पूर्व में गाया गया संस्कृत का क्लिष्ट श्लोक सुनिए,
“मन तरपत हरि दर्शन को आज..” के पूर्व में उन्ही के द्वारा बोला गया “हरि ओम…” सुनिए,
रफ़ी साहब द्वारा ही फिल्म तुलसीदास में गाई गयी “श्री रामचरित मानस” की क्लिष्ट चौपाइयाँ सुनिए।
एक शिव भजन में “रफ़ी साहब” द्वारा ही बोला गया “ओम नमः शिवाय..” सुनिए
क्या क्या सुनेंगे साहब, पूरा जीवन भी कम पड़ जाएगा लेकिन फिर भी “रफ़ी साहब” के गीत खत्म नहीं होंगे और उनको सुनने की प्यास नहीं बुझेगी, जितना ही “रफ़ी साहब” को ढूंढने की कोशिश करेंगे उतना ही खोते चले जाएँगे।
दोस्तों, “मोहम्मद रफ़ी साहब” का सटीक एवं स्पष्ट उच्चारण सर्व-विदित है और इस विषय पर और ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है.
दोस्तों, भविष्य में इसी पुस्तक के कुछ अन्य लेखों की भी विवेचना करेंगे और उनका सच जानेंगे।
“जय रफ़ी साहब”
“लेख का सच: भाग-5”
हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक सुरीले एवं विविध सुर-आयाम के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक “मोहम्मद रफ़ी” की वाणी-वीणा से सुसज्जित दुर्लभ गीतों की साहित्यिक विवेचना तथा उनके गायन-साम्राज्य के पुनरावलोकन से सजी पुस्तक “वो जब याद आए बहुत याद आए (संपादक: श्री सुमन चौरसिया जी)” के एक अन्य लेख-(5) का सच-
दोस्तों, आज हम बात कर रहें हैं “मोहम्मद रफ़ी साहब” के उस अमर कालजयी गीत की जिसके बिना कोई पिता अपनी बेटी की विदाई की कल्पना भी नहीं कर सकता। जी हाँ हम बात कर रहे हैं “रफ़ी साहब” के गीत “बाबुल की दुवाएँ लेती जा,, जा जा तुझको सुखी संसार मिले..” की.
इसी पुस्तक के एक लेख में कहा गया है कि, “रफ़ी साहब” ने यह गीत नाटकीयता के साथ गाया है. क्या आप सहमत हैं इस बात से? मैं तो यही कहूँगा कि, जिस व्यक्ति को इस गीत में नाटकीयता का आभास हो रहा है तो उस व्यक्ति की या तो बेटी नहीं हैं और या फिर वह व्यक्ति भावनाओं से रहित है.
ये भी कहा गया है कि, रोते हुए कोई गीत गाना संभव नहीं है. इस पर मैं ये कहना चाहूँगा कि ठीेक है साहब, रोते हुए गाना संभव नहीं है लेकिन “गाते हुए तो रोना आ सकता है न” और ठीक यही हुआ है इस गीत के अंत में.
लेखक को शायद इस बात का ज्ञान नहीं है कि, किन परिस्थितियों में “रफ़ी साहब” ने यह गीत गाया और यह क्यों अमर गीत बन गया. हम बताते हैं आपको…
इस विषय पर मेरी बात “रफ़ी साहब” के सब से छोटे दामाद “श्री परवेज़ अहमद जी (जो कि लखनऊ से ही हैं)” से हुई और उन्होंने पूरी बात विस्तार से मुझे बतायी। मैं उसे संक्षेप में यहाँ बता रहा हूँ, हालाँकि, “रफ़ी साहब” को चाहने वाले हर व्यक्ति को यह बात पहले से ही मालूम है.
“रफ़ी साहब” ने यह गीत अपनी बड़ी बेटी सुश्री परवीन रफ़ी जी(परवीन जी का विवाह लखनऊ के डॉक्टर आफताब अहमद जी से हुआ था और वे लंदन में रह रही हैं) के विवाह के तीसरे दिन रिकॉर्ड किया था और गीत के ख़त्म होते होते वे अपनी स्वयं की बेटी की विदाई का दृश्य याद कर के अत्यंत भावुक हो उठे और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख सके और चाह कर भी स्वयं के आंसुओं को सम्भाल न सके, जिसे गीत के अंत में स्पष्ट महसूस किया जा सकता है. यह गीत गाने के तुरंत बाद ही वो किसी से बिना कुछ कहे घर चले गए, और यह गीत हमेशा के लिए अमर हो गया परन्तु यदि किसी को इसमें नाटकीयता का आभास हो तो मैं तो यही कहूँगा कि, “जाकी रही भावना जैसी,, प्रभु मूरत देखि तीन तैसी”
लीजिये सुनिए यही अमर कालजयी विदाई गीत “मोहम्मद रफ़ी साहब” की मखमली और दर्दभरी आवाज़ में-
https://www.youtube.com/watch?v=b-VbGRFHaTc
दोस्तों, भविष्य में इसी पुस्तक के कुछ अन्य लेखों की भी विवेचना करेंगे और उनका सच जानेंगे।
“जय रफ़ी साहब”
“लेख का सच: भाग-6”
हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक सुरीले एवं विविध सुर-आयाम के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक “मोहम्मद रफ़ी” की वाणी-वीणा से सुसज्जित दुर्लभ गीतों की साहित्यिक विवेचना तथा उनके गायन-साम्राज्य के पुनरावलोकन से सजी पुस्तक “वो जब याद आए बहुत याद आए (संपादक: श्री सुमन चौरसिया जी)” के एक अन्य लेख-(6) का सच-
दोस्तों, इसी पुस्तक के एक लेख में कहा गया है कि, “रफ़ी साहब” ने दूसरे गायकों से गाने छीन कर उन्हें अपनी आवज़ दी.
ज़नाब, बड़ा ही हास्यास्पद आरोप है ये रफ़ी साहब पर जो कि, उनके इस दुनिया में रहते हुए और उनके इस इस दुनिया से रुखसत होने के लगभग 36 वर्ष बाद शायद पहली बार किसी संगीत प्रेमी ने सुना हो?
दोस्तों क्या आप इस आरोप से सहमत हैं? मेरे ख्याल से रफ़ी साहब के चाहने वालों को तो छोड़ दीजिये, जो उनके अलावा किसी अन्य गायक के प्रशंशक होंगे शायद वो भी इस बात से सहमत नहीं होंगे।
ऐसा व्यक्ति जो बात करने में भी घबराता हो, हमेशा आँखे झुका कर बात करता हो और अपने चरित्र को सर्वोपरि रखता हो, ऐसा इंसान जिसकी तारीफ़ करने पर उसकी उंगलियाँ सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए ऊपर उठ जाती हों, जो ये कहता हो कि, मुझसे कई अच्छे गाने वाले हैं यहाँ पर लेकिन न जाने क्यों उस मालिक की इतनी कृपा मुझ पर है, जो व्यक्ति कोलकाता में महेंद्र कपूर जी के साथ ईश्वर का धन्यवाद करने के लिए आधी रात में ज़मीं पर सज़दा करने लगता हो, वो भला कभी ऐसा सोच भी सकता है?
दोस्तों, जिन गीतों का ज़िक्र पुस्तक में किया गया हैं उनमें से पहला है – “चल उड़ जा रे पंछी…”
पुस्तक में कहा गया है कि, इस गीत को तलत साहब ने गाया था लेकिन “रफ़ी साहब” ने उनसे ये गीत छीन लिया और अपने स्वर में रिकॉर्ड किया। यकीन नहीं आता कि, कोई व्यक्ति आरोप लगाने के इस स्तर तक भी जा सकता है वो भी बिना सच जाने हुए.
तलत महमूद जी के पुत्र “श्री खालिद तलत महमूद जी” इस बारे में क्या कहते हैं वो मैं उन्ही के शब्दों में आप के सामने पेश कर रहा हूँ, ध्यान से पढ़िए –
“During 50’s HMV wanted to copy the West (where one hit English song was sung by many singers) and create VERSION RECORDINGS of popular Hindi songs. Since Talat Mahmood was the most popular singer in those days they persuaded him to do the first recording ‘Chal ud ja re panchi’ which Mohd Rafi had sung for film ‘BHABHI’ and HMV released as ‘Version Recording FT21027 Twin/Black Label 78 RPM”
तो दोस्तों आप सभी को स्पष्ट हो गया होगा कि, सुप्रसिद्ध गीत “चल उड़ जा रे पंछी..” रफ़ी साहब फिल्म के लिए पहले ही गा चुके थे और HMV के आग्रह पर बाद में तलत जी ने इस गीत की ”Version Recording FT21027 Twin/Black Label 78 RPM” रिकॉर्ड की.
इसी प्रकार इस पुस्तक में कहा गया है की गीत “रहा गर्दिशों में हरदम…” मुकेश जी गाने वाले थे लेकिन “रफ़ी साहब” ने उनसे ये गीत छीन लिया और अपने स्वर में रिकॉर्ड करा लिया।
दोस्तों, जिसे भी संगीत और सुरों की ज़रा सी भी जानकारी होगी वह ऐसी हास्यास्पद बात कभी नहीं करेगा।
सुप्रसिद्ध गीत “रहा गर्दिशों में हरदम…” तार-सप्तक के पंचम स्वर तक गाया जाने वाला गीत है अर्थात, यह गीत तार-सप्तक(Upper notes) के उच्च स्वर “म” से होता हुआ उच्च स्वर “प” को स्पर्श करता है.
आप इस गीत को पूरा गुनगुना कर देखिये आप को स्वयं ही इस आरोप का उत्तर मिल जाएगा कि, क्या रफ़ी साहब के अलावा कोई इस गीत को तार-सप्तक के पंचम स्वर तक गा सकता था, और अगर इस गीत को मध्य-सप्तक या मन्द्र-सप्तक पर गाया जाता तो इस गीत की सुंदरता धूमिल पड़ जाती या यूँ कहें कि, गीत की आत्मा ही मर जाती। शायद इसी लिए संगीतकार ने इस गीत के लिए “रफ़ी साहब” का चुनाव किया।
https://www.youtube.com/watch?v=-ky5WZ-ho9o
दोस्तों, आप को एक उदहारण देता हूँ: फिल्म हाथी मेरे साथी के सभी गीत किशोर दा गाने वाले थे किन्तु, फिल्म के एक उच्च स्वर के गीत “नफरत की दुनिया को छोड़ के..” को गाने में किशोर दा ने कुछ असहज अनुभव किया तो संगीतकार ने इस गीत को गाने के लिए “रफ़ी साहब” से आग्रह किया। “रफ़ी साहब” ने बहुत ही संकोच के साथ ये कहा कि, उनका गाना ठीक नहीं रहेगा लेकिन जब किशोर दा ने स्वयं अनुरोध किया तब “रफ़ी साहब” ने इस गीत को गाया.
दोस्तों, क्या ऐसा इंसान किसी और से गीत छीन सकता था. पिछले 75 वर्षों में “रफ़ी साहब” पर लगाया गया इस तरह का यह अनोखा और पहला आरोप है. “रफ़ी साहब” एक ऐसे इंसान थे कि, उनके विरोधी भी उनके प्रशंशक थे और उनके चरित्र पर कभी ऊँगली नहीं उठा सके.
दोस्तों, और भी बहुत कुछ है कहने को लेकिन अभी बस इतना ही.
“जय रफ़ी साहब”
*My 7th and last reply to the author of the article and editor of the book:
लेख का सच: भाग – 7 (अंतिम भाग)
हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक सुरीले एवं विविध सुर-आयाम के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक “मोहम्मद रफ़ी” की वाणी-वीणा से सुसज्जित दुर्लभ गीतों की साहित्यिक विवेचना तथा उनके गायन-साम्राज्य के पुनरावलोकन से सजी पुस्तक “वो जब याद आए बहुत याद आए (संपादक: श्री सुमन चौरसिया जी)” के एक अन्य लेख-(7) का सच-
दोस्तों, इस पुस्तक के लिए बार बार ये दावा किया गया है कि, यह पुस्तक शोध एवं सही आंकड़ों पर आधारित है. पुस्तक के लेखकों एवं सम्पादक द्वारा किया गया ये दावा कितना सत्य है, इस पर उस वक़्त प्रश्न-चिह्न लग जाता है जब इस पुस्तक के एक लेख में “रफ़ी साहब” के गीतों की सँख्या 3500 बताई जाती है. रफ़ी साहब के गीतों की सँख्या पर मैं ज्यादा कुछ न कहते हुए सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि, “रफ़ी साहब” के 5500 से अधिक गीत तो स्वयं मेरे ही पास उपलब्ध हैं, और शायद इस से भी ज्यादा कुछ अन्य भक्तों के पास होंगे. शीघ्र ही उनके 6000 से भी अधिक गीतों की दो पुस्तकें गीतों के बोल के साथ प्रकाशित होने वाली हैं. उनमें से एक पुस्तक के मुख्य पृष्ठ की प्रति मैं संलग्न कर रहा हूँ.
दोस्तों, जिन लोगों ने भी गणित(Maths) विषय का अध्ययन किया होगा तो जरूर ही समुच्चय(Sets) पाठ भी पढ़ा होगा और उसकी परिभाषा भी कि, “चीजों के सुपरिभाषित समूह को समुच्चय कहतें हैं (Well defined group of objects is called set)” अर्थात जो सभी के लिए सत्य हो.
जिस प्रकार आप ने पढ़ा होगा कि, गणित के कठिन प्रश्नों का समूह समुच्चय नहीं हो सकता क्यों कि, यह सुपरिभाषित नहीं हैं. हो सकता उस समूह का कोई प्रश्न आपको कठिन लगता हो परन्तु मुझे कठिन न लगता हो, उसी प्रकार “अच्छे गायकों का समूह भी समुच्चय नहीं हैं” हो सकता. हो सकता है किसी को मुकेश जी पसंद हों, किसी को किशोर दा और किसी को मोहम्मद रफ़ी साहब।
कोई रफ़ी साहब की ईश्वर की तरह पूजा करता है तो हो सकता है कोई मुकेश जी या किशोर दा को ईश्वर के समतुल्य समझता हो. इस पर किसी को कोई ऐतराज नहीं है और ये बहस का मुद्दा नहीं होना चाहिए, बस आवश्यक यह है कि, चाहे हम किसी को भी पसंद करें पर सम्मान सभी का करें, और किसी के बारे में कुछ लिखने के पहले सौ बार सोच समझ लें और उस बारे में पूर्ण एवं सत्य जानकारी एकत्र कर लें।
खैर पसंद या नापसंद पर सब की अलग अलग राय हो सकती है, इस पर चर्चा करना तर्कसंगत नहीं है. गायक तो बहुत अच्छे अच्छे मिल जाएंगे लेकिन “रफ़ी साहब” के जैसा इंसान दोबारा फिल्म इंडस्ट्री को मिलना शायद ना-मुमकिन है.
“रफ़ी साहब” सभी धर्मों को एक समान महत्त्व तथा सम्मान देते थे, शायद यही वजह है कि, अपने समकालीन गायकों में सबसे ज्यादा भजन और धार्मिक गीत “रफ़ी साहब” ने ही गाये हैं, फिर चाहे वो राम-भजन हों, कृष्ण-भजन हों, शिव-भजन हों, माँ दुर्गा की स्तुति हो, भगवान् जीसस के गीत हो, गुरु नानक या गुरु गोविन्द जी के पवित्र शबद हो, जैनियों के श्लोक हों या फिर हज़ के गीत या नातें।
उनका सरल एवं साधारण व्यक्तित्व आज भी हमारे युवाओं का सही मार्गदर्शन कर रहा है.
1962 में चीन से युद्ध के दौरान “रफ़ी साहब” ही लेह और लद्दाख गए थे अपने जवानों की हौसलाअफ़ज़ाई के लिए और वहां शून्य से 30 से 40 डिग्री नीचे के तापमान पर भी उन्होंने देशभक्ति के गीत गा कर जवानों में एक नए जोश का संचार कर दिया था.
“मोहम्मद रफ़ी साहब” आज के इस युग में भी “मानवता एवं राष्ट्रीय एकता” की जीती जागती मिसाल हैं.
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि, जिस प्रकार मनुष्य अपने जीवन में एक बार अवश्य ही अपने चरम पर पहुँचता है और उसकी सारी ख्वाहिशें पूर्ण हो जाती हैं उसी प्रकार हर व्यक्ति को जीवन में एक बार कभी न कभी, किसी न किसी रूप में, जाने या अनजाने में “रफ़ी साहब” के गीतों की शरण लेनी ही पड़ती है और यह अटल सत्य है चाहे कोई माने या न माने।
“जय रफ़ी साहब, जय भारत, जय हिन्द”
Avid Hindi Readers and Mohammed Rafi Fans, feel free to submit English translation of this article for our English readers.
Also, read “An Open Letter to Rafi Demeanors” by J.K. Bhagchandani.
That would be awesome Ashok ji. Please do share it with me admin@mohdrafi.com
If the article has still not been translated into English, I would like to take up the translation.
http://m.thehindu.com/entertainment/press-rewind-to-hear-them/article7526044.ece
More power to you, Anil Bajpai – voice of Mohd Rafi Sahab. Just discovered him on YouTube an hour ago, singing for the Rafi Foundation. A living tribute. Bless him.
tujhe nagmo ki jaan aehle nazar yuhi nahi kehte,
tere geeto ko dil ka humsafar yuhi nahi kehte,
dukhi the laakh par phir bhi mutmaeen thai dard k marre,
teri awaaz ki shabnam se dhul jate thai gum saare,
teri taano me husn zindagi leti thi angdaayi,
tujhe allah ne baksha tha andaz ae masihayi,
I recently saw an upload dated 25.4.2016 on website in which a Pakistani T .v host talking with a lady interviewer in Pakistan has remarked that k.k ( kishore Kumar) is a better singer than Rafi and attributes Rafi’s popularity to Muslims favour and support. I was very much disturbed by his foolish thoughts. Annoyed too I sent my comments terming the remarks as nonsense.I invited that fellow to look into Rafi saha’s fan websites to find out the love of millions of Rafi’s fans across the world.All are Rafi’ fans.There is no discrimination of the fans here based on caste or creed.I strongly condemn his lamentable silly thoughts and request all Radians to strongly condemn him and his remarks .
Rafi Sahib was not only the best singer ever seen by the song lovers but also great and magnanimous personality. Unlike Lata Mangeshkar he never was a blocking stone for newcomers.
Allah Made One Sun and one Mohd Rafi for our earth .Mohd Rafi is number one and before one it is zero and after is two ….
Had trouble understanding the article fully because of my limited knowledge of Hindi but got the essence of it. I hope more such authors who know the real truth about Rafi would come forward and put it in writing.
Couldn’t find the link to the article in English as referred to in Sanjeev Kumar Dixit’s post. But I dud read the google translation which leaves a lot to be desired.
Kudos to you dearest Sanjeev Dixit Bhai for exposing the false write ups of non musical taste persons
Satyameva Jayathe
Jai Rafi sahab
Above article In English by Google translate:
Hindi cinema’s most diverse musical and best playback singer sur-dimension “Mohammed Rafi” with the voice-lute rare literary interpretation of songs and singing, adorned with the revision of the book Empire, “comes to mind when she missed the” A True article
This book is written in an article that, “Rafi sahib” Mahendra Kapoor had refused to duet with him.
When I took this subject, “Mr Mahendra Kapoor” son of “Mr. Rohan Kapoor live “, he spoke of it, preferring not dismissed outright and say -” wrong, never ever can not say ,, Rafi sahib. “He added that,” Since, Rafi Sahab and was similar to the voices of my father and the audience for them is difficult to differentiate the two more duets with Rafi Saheb not sung and also believed that, by taking advantage of this, some people will try to love them soured. By the end of the two father-son or brother-brother was loved like ”
friends, then it is not a show of Mahendra Kapoor in London, not touching the feet of the sons Rafi sahib. It probably know a lot of people. Mahendra Kapoor believed that, Rafi sahib, “the son of his master-brother and that too many of them are equally respected,” Rafi sahib ”
Zee News article writers probably by Mahendra Kapoor did not see the interview in which he continued for 15 minutes, “Rafi sahib” speak about feelings were overwhelmed and were finally brought tears to their eyes. There is much more to say and only briefly.
(I “Rohan Kapoor’m public with the consent of the fact)
Friends, in the future interpretation of the book and some other writings also know their truth.
“Jay Rafi sahib”
N. G. Ramaswamy Sir and others:
At the end of the article there is a link for English article by Jagdish Ji in short. Please click that link for English readers.
SANJEEV SIR I WOULD BE HAPPY IF THIS MESSAGE IS I ENGLISH. NEED AN ENGLISH TRANSLATION.
I do not feel like commenting on such shit and false story. Rafi sahab was very close to God not only by his divine singing but also by his purest heart. These jealous people increases our love for Rafi sahab even more. Jai jai Rafi sahab.
There are people in world, who love to talk sensational subjects, often they are fabricated. There are vested interests behind each successful personality, who always write, talk, disperse misleading stuff about such successful personality like Rafi sahab to malign image. But truth can’t be covered for long. Good writeup
I LOVE THIS SONG, PLEASE CAN SOME ONE PLEASE PLEASE GIVE THE ENGLISH TRANSLATION, AND WHY RAJ KAPOOR GIVE THIS SONG TO MOHD. RAFI THE GOD OF ALL SINGERS, THANKING YOU IN ADVANCE.